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Wednesday 23 July 2014

गज़ल-कुञ्ज (4) झरबेरी-गुलाब (क) मेरे पड़ोसी !


(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
 आइये मेरे पड़ोसी को नज़र भर देखिये !

देखिये इसकी अदायें, इसके तेवर देखिये !!


भवन इनका काँच का है, किन्तु वे निश्चिन्त है -

फेंकते वे मेरे घर पर कितने पत्थर देखिये !!






पत्थरों का हृदय, पत्थर का कलेजा हो गया -

अक्ल पर उनके पड़े हैं कितने पत्थर देखिये !!


प्यार से भरने हमें बाहों में अपनी आ गये -

आस्तीनों में छिपाये पैने खंज़र देखिये !!


चोट हमने खाई जब, एकांत में हर्षित हुये-

तसल्ली देते हैं झूठी तरस खा कर, देखिये !!


मगरमच्छों की तरह हिंसक है उनकी भावना –

आँख में उमड़ा दिखावे का ‘समुन्दर’ देखिये !!


"प्रसून" की सारी पंखुरियाँ किस तरह घायल हुईं-


गुलाबों के
पास झरबेरी का मंज़र देखिये!



1 comment:

  1. बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें....

    ReplyDelete

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