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Thursday, 3 July 2014

गज़ल-कुञ्ज (1) प्रणाम (ख) प्रियतमा प्रणाम (i) ओ प्रियतमा ! ओ प्रियतमा !!



(ख) प्रियतमा प्रणाम (i) ओ प्रियतमा ! ओ प्रियतमा !!
प्रियतमा! ओ प्रियतमा !!
जीवों में तुम हो आत्मा !!               
महिमा तुम्हारी माप ले -
                        ऐसी न कोंई है विमा ||                            विमा=माप
  
परमा शिवा भव-सुन्दरी -
सत्या हो तुम हो उत्तमा||

रक्षक विष्णु की लक्ष्मी –
शिव की शिवानी तुम उमा ||

हो ज्योति सूर्य में तुम्हीं -
तुम से ही चमका चन्द्रमा ||

नैराश्य रजनी से जननि!
हर लोअरी!तम मय अमा ||


देवी हो विद्द्या ज्ञान की -
हर कला में तव गुण रमा ||
 
शिल्पों का कौशल-पुंज तो -
हाथों तुम्हारे ही थमा ||

    
जननी हो भाव शरीर की
नित्या हो अजरा अजन्मा || 
पाई है गन्ध "प्रसून" ने –

चरणों में तेरे जब नमा ||

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