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Monday, 7 July 2014

गज़ल-कुञ्ज (1) प्रणाम (ग) गुरुवर प्रणाम !


तुम करते जीवन का सुधार |

हे गुरु करते मन का सुधार !!

हर, मलिन धूल आचरणों की -

बरसाते सुबोध रस-‘सु-धार’||

ईश्वर के तुम जन-प्रतिनिधि हो -

हरते व्यवहारों के विकार || 

         तुम 'रजक'  भावना वसनों के-     'रजक'=बरेठा  

मन- चादर का करते निखार ||


तुम ज्ञान- विवेक के मार्तण्ड-

हरते तुम चित् का अन्धकार ||

यदि तुम करुणाकर  कृपा करो !

फिर कौन समस्या दुर्निवार ??
 
सिंचित करते 'उलझन-मरुथल'-

बन समाधान-रस की फुहार ||

हर निराश मन तुमने सींचा -

बरसाकर आशा- सुधा धार ||

किस तरह थाह पाये "प्रसून"-

तुम रहस्य सागर हो अपार ||




2 comments:

  1. बेहतरीन गुरुवंदन ग़ज़ल कुञ्ज में
    गुंजन गुंजन

    ReplyDelete

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