तुम करते जीवन
का सुधार |
हे गुरु करते मन का सुधार !!
हर, मलिन
धूल आचरणों की -
बरसाते सुबोध रस-‘सु-धार’||
ईश्वर के तुम ‘जन-प्रतिनिधि’
हो -
हरते व्यवहारों के विकार ||
तुम 'रजक' भावना वसनों के- 'रजक'=बरेठा
मन- चादर का करते निखार ||
तुम ज्ञान- विवेक के मार्तण्ड-
हरते तुम चित् का अन्धकार ||
यदि तुम
करुणाकर कृपा करो !
फिर कौन समस्या दुर्निवार ??
सिंचित करते 'उलझन-मरुथल'-
बन ‘समाधान-रस’ की फुहार ||
हर निराश मन तुमने सींचा -
बरसाकर आशा- सुधा धार ||
किस तरह थाह
पाये "प्रसून"-
तुम रहस्य सागर हो अपार ||
उम्दा गजल
ReplyDeleteबेहतरीन गुरुवंदन ग़ज़ल कुञ्ज में
ReplyDeleteगुंजन गुंजन