प्रियतमा जननि !तुमको प्रणाम !!
हर सुख दुःख मेरा तेरे नाम !!
तेरी हर सरिता
सुधा वती |
है तेरा ‘सु-अंक’ ‘सुखद धाम’ ||
तेरे वन, बाग ‘सु-भाग’ सुभग -
इस पर वारी हैं कोटि काम ||
तेरी गोदी
में पले सभी-
हो शीत छाँव या तची घाम ||
सब ने पाया है सुख तुम से -
क्या पीर
फ़कीर क्या राम श्याम ||
वर दे, पराग
बाँटें "प्रसून"-
मत लगे कभी इस पर
‘विराम’
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-07-2014) को "बरसो रे मेघा बरसो" {चर्चामंच - 1665} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर
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