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Thursday, 3 July 2014

गज़ल-कुञ्ज (1) प्रणाम (ख) प्रियतमा प्रणाम(ii) प्रियतमा जननि तुमको प्रणाम !


प्रियतमा जननि !तुमको प्रणाम !!
हर सुख दुःख मेरा तेरे नाम !!



तेरी हर सरिता सुधा वती |

है तेरा ‘सु-अंक’ ‘सुखद धाम’ ||



तेरे वन, बाग ‘सु-भाग’ सुभग -

इस पर वारी हैं कोटि काम ||



तेरी गोदी में पले सभी-
हो शीत छाँव या तची घाम ||
 

सब ने पाया है सुख तुम से -
क्या पीर फ़कीर क्या राम श्याम ||

वर दे, पराग बाँटें "प्रसून"-

मत लगे कभी इस पर ‘विराम’ 

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-07-2014) को "बरसो रे मेघा बरसो" {चर्चामंच - 1665} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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