(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
फाख्तों के,तितलियों के पर कटे घायल हुईं |
कण्टकों की डालियाँ कुछ इस तरह ‘पागल’ हुईं !!
कण्टकों की डालियाँ कुछ इस तरह ‘पागल’ हुईं !!
बाग में तारों सी खिलतीं, ‘सुमन-कलियाँ’
सुस्त हैं-
अनमनी उदास, दुखिता
दया के क़ाबिल हुईं ||
तेज झोंकों से भरी कुछ ‘हवायें’ बदमस्त सी-
झूमती हैं, डगमगातीं
, और
भी ‘चंचल’ हुईं ||
हर झरोखे से उठी है, चीख क्रन्दन से भरी-
हर झरोखे से उठी है, चीख क्रन्दन से भरी-
लहू के प्यासे मनों में इस तरह खलबल हुई ||
मछलियों को भय हुआ, वे
तड़फड़ाने सी लगीं
शान्त,सुन्दर झील के तल में विषम हलचल
हुई ||
स्नेह के सम्बन्ध वाली रसिक प्रेमी टोलियाँ -
'काम'के तूफ़ान,हिंसा- 'कहर के बादल' हुईं ||
'काम'के तूफ़ान,हिंसा- 'कहर के बादल' हुईं ||
‘अँधेरों’ ने ‘उजालों’ पर कर लिया अधिकार यों-
"प्रसून" मेरी चाहतें, मायूस
यों हर पल हुईं !!
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