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Tuesday, 22 July 2014

गज़ल-कुञ्ज (3) कंटाल (ग) कंटकों की डालियाँ !

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

फाख्तों के,तितलियों के पर कटे घायल हुईं |
कण्टकों की डालियाँ कुछ इस तरह ‘पागल’ हुईं !!
बाग में तारों सी खिलतीं, सुमन-कलियाँ’ सुस्त हैं- 
अनमनी उदास, दुखिता दया के क़ाबिल हुईं ||
तेज झोंकों से भरी कुछ ‘हवायें’ बदमस्त सी-
झूमती हैं, डगमगातीं , और भी ‘चंचल’ हुईं ||

हर झरोखे से उठी है, चीख क्रन्दन से भरी-
लहू के प्यासे मनों में इस तरह खलबल हुई ||
मछलियों को भय हुआ, वे तड़फड़ाने सी लगीं
शान्त,सुन्दर झील के तल में विषम हलचल हुई ||
स्नेह के सम्बन्ध वाली रसिक प्रेमी टोलियाँ -
'
काम'के तूफ़ान,हिंसा- 'कहर के बादल' हुईं ||
‘अँधेरों’ ने ‘उजालों’ पर कर लिया अधिकार यों-
"प्रसून" मेरी चाहतें, मायूस यों हर पल हुईं !!


 

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