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Tuesday, 1 July 2014

गज़ल-कुञ्ज (1) प्रणाम (क) प्रियतम-प्रणाम (ii) प्रियतम तुमको मेरा प्रणाम !


तुम अनाम फिर भी कोटिनाम |
प्रियतम तुमको मेरा प्रणाम !!

निर्बाध 'काल'की गति मन्थर-
रोकते उसे भी दे विराम ||
 
कण कण में तुम रमते हो यों-
कहते तुमको लोग राम |


कामना-हीन निष्काम हो तुम !
पर तुम हो अनन्त सत्य काम ||
 
अनिकेत’, किन्तु सर्वत्र व्याप्त |
‘जड़-चेतन’ सबके परम धाम ||

जो मिले, तुम्हारी ‘कृपा-गन्ध’-
हो जाये 'प्रसून' धन्य नाम ||

                                              


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