मित्रो ! मेरा गज़लों-शैली पर 'ग़ज़ल-कुञ्ज' के नाम से एक ग्रन्थ पूरा होने के निकट है | इसकी एक-एक रचना समय-समय पर प्रारम्भ से अन्त तक प्रकाशित करना चाहूंगा |आशा है कि आप इतने लम्बे समय के बाद
लम्बी बीमारी से छूट कर आप के रूबरू होने पर मेरा साथ पुन: देंगे !
तुम प्रकाश,तुम हो अन्धकार !
हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार !!
निगमागम तुम्हीं अपारगम्य |
पा सकता तुम से कौन पार ??
प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार ||
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार ||
निष्काम,कामना हो सब में-
संसृति तुम, फिर भी हो असार ||
तुम परम शून्य, तुम हो अनंत-
निर्गुण तुम, फिर भी गुणाकार ||
प्रिय, 'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम-
तुम को प्रणाम शत कोटि बार ||
अनिकेत, व्याप्त हो कण कण में-
सब के आधार हो निराधार ||
है "प्रसून", प्रियतम, शरणागत !
निगमागम तुम्हीं अपारगम्य |
पा सकता तुम से कौन पार ??
प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार ||
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार ||
निष्काम,कामना हो सब में-
संसृति तुम, फिर भी हो असार ||
तुम परम शून्य, तुम हो अनंत-
निर्गुण तुम, फिर भी गुणाकार ||
प्रिय, 'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम-
तुम को प्रणाम शत कोटि बार ||
अनिकेत, व्याप्त हो कण कण में-
सब के आधार हो निराधार ||
है "प्रसून", प्रियतम, शरणागत !
भव-सिंधु से कर दो इसे पार !!
Bahut sunder aadyatmikta se otprototprot
ReplyDeleteआध्यात्म का पुट लिए सुन्दर शेर हैं सभी ... बधाई ...
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