(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘अवाम’
को ऐसा सिला दिया तुमने !
‘उसूलों’ कों जिन्दा जला दिया तुमने !!
दिखा कर
‘दही’ की ‘मटकी’ लुभाया यों-
धोखे से
‘चूना’ खिला दिया तुमने !!
जिन्होंने
‘महकता’ लगया था ‘गुलशन’
अह्सान
उन सबका भुला दिया तुमने !!
छिड़का
जिन्होंने ‘तेज़ाब’ क्यारी पर-
‘शहद’
उन ‘दरिन्दों’ को पिला दिया तुमने !!
‘हलाल
के लहू’ से तुम्हें रश्क यों था कि-
अधमरी
‘जोंकों’ को जिला दिया तुमने !!
‘सच्चाई’
जब जागी, ले कर ‘अंगड़ाई’
‘झूठ की
अफ़ीम’ दे सुला दिया तुमने !!
‘तीस-भरे
‘दर्दों’से जब बा कराहे हम-
‘तसल्ली’का
झूला’, झुला दिया तुमने !!
झर गये
‘पत्ते’, झरे ‘गुल’, झरीं ‘कलियाँ’-
‘पेड़’
को झकझोरा, हिला दिया तुमने !!
पायी
जों ‘कुर्सी’, किस्मत का करिश्मा था-
‘चमड़े का
सिक्का’ चला दिया तुमने !!
करते
हैं तारीफ़ आपस में जम कर-
‘ऊँटों’
कों ‘गधों’ से मिला दिया तुमने !!
‘ताक़त-आजमाई’
का शौक था यों कि-
‘पड़ोसी
को लड़ने बुला लिया तुमने !!
हमने ‘हक़’ माँगा,बस, खता थी इतनी-
‘बेरहम
चोटों’ से रुला दिया तुमने !!
‘प्रसून”
ये ‘पत्थर’ हैं, गूंगे हैं, बहरे हैं-
इनसे
क्यों ‘शिकवा-गिला’ किया तुमने !!
सिला=प्रतिकार,रश्क=ईर्ष्या
व्यंग्य विनोद पूर्ण बेहतरीन प्रस्तुति।
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