(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जब तपती
है कभी ‘उदर’ में, ‘भूख’ की तपती ‘आग’ !
नहीं
सुहाते ‘मल्हार-सावन’ के ‘रस-भीने राग’ !!
‘जठर-अनल’ की मज़बूरी से, ‘कलियाँ’ हैं लाचार !
कामुक
‘भंवरों’ की ‘बाहों’ में ‘लुटते’ रोज़ ‘पराग’ !!
Ek Marmsparti raachna...katu saty ..bhookh aur gareebi ka aaina dikhaati rachna ...zabaardast !!
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