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Tuesday, 28 October 2014
(11) ‘कंगाल अमीरी’(ख) दौलत से कहीं कोई ‘अमीर’ होता है !
‘अमीर’
वह, जिसका कोई ‘ज़मीर’ होता है !!
लोहा तो
लोहा है, चाहे जो बना लो !
‘लोहा’
जो पिट जाये, ‘शमशीर’ होता है !!
‘नस-नस’
में ‘आग’ भर देता, चुभ जाये तो-
‘ततैया-डंक’
बहुत ही ‘हकीर’ होता है !!
जीना
‘हराम’ कर दे, छीन ले ‘दिल’ का ‘चैन’-
‘नन्हाँ’
सा ‘काँटा’, ‘बगलगीर’ होता है !!
भरे-पूरे
‘आटे’ को, ‘जलेबी’ बनाता है !
देखिये
बस ‘चुटकी’ भर ‘खमीर’ होता है !!
‘शुतुर्मुर्ग’
कद्दाबर, ‘रेत’ में रहता है-
कोकिल
का मीठा सुर बेनज़ीर होता है !!
भलाई
करे, और खुद का ‘पता’ न दे-
बस, वही
तो ‘सच्चा दानवीर’ होता है !!
आ जाये
किसी ‘वक्त’ ‘काम’ कुछ, क्या जाने-
‘तिफ्ल’
भी कभी-कभी ‘दस्तगीर’ होता है !!
‘रावण’
की ‘लंका’, जला देता है जो “प्रसून”-
दिखने
में छोटा सा ‘महावीर’ होता है !!
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ग़ज़ल
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