Powered by Blogger.

Followers

Saturday, 4 October 2014

(8) आग ! (ग) जठारानल (भूख की आग) (iii) दहक रहे ‘अंगार’ !

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

                                         

जठर’ से बढ़ कर ‘गर्म आग है और नहीं  संसार में ! 

‘तहज़ीबें’ जल जातीं इसके, दहक रहे ‘अंगार’ में !!

जब जलती है ‘काम’ की ‘ज्वाला’, सारी ‘शान्ति’ जलाती है !

आग लगा देती है ‘मीठे मीठे मोहक प्यार’ में !!

यह न बुझी तो, ‘अरमानों’ को झुलसा कर रख देती है !

‘अनुबन्धों’ को ‘जला-जला’ कर बदला करती ‘क्षार’ में !! 

 ‘झुग्गी’ में रहता जो भीखू, उसका थोड़ा ‘हाल’ सुनो !

भूख लगी तो, ले आता है’ जो भी मिला उधार में !!

अपनी ‘कुण्ठा’ भरी ‘कसक’ को, दबा नहीं जब पाता है !

‘डूब-डूब’ कर ‘होश’ गँवाता, ‘लालपरी’ के प्यार में !!

      ‘भूख’ का करके रोज़ बहाना, माँग-माँग कर लाता है-

रोज़ शाम ‘भट्टी’ पर जाता, है वह मुआ बज़ार में !!

उसकी ‘अर्द्ध अंगिनी’ उसका, आधा ‘बोझ’ उठाती है !!

नित्य किसी ‘बंगले’ पर जाती, बैठ चमकती कार में !!

‘रुप-सुधा-रस-पान’ करा कर, जो मिलता, ले आती है !

बड़ी ‘कुशल’ है, ‘लाज की कलियों’ के ‘कामुक व्यापार’ में !!

सात-आठ बच्चों की ‘जननी’, उनमें कुछ भीखू के हैं !

किस बच्चे का कौन ‘पिता’ है, कौन पड़े इस ‘रार’ में !!

हर दिन हर ‘मौसम’ में उनका, ‘रोग’ से ‘नाता’ रहता है !

कोई खुजली, पेट-दर्द में, कोई दुखी बुखार में !!

पड़ी हुई अधजली बीडियाँ, कोई उठा के पीता है !

कोई ज़ेब काटता फिरता, आवारा बेकार में !!

इनका ‘जीवन’ कौन सुधारे, कौन सिखाये ‘ज्ञान’ इन्हें ?

“प्रसून”, किसको ‘समय’, ‘व्यस्त’ हैं सारे लोग ‘सुधार’ में !!

           

 

 

 

2 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति !
    आभार !

    ReplyDelete
  2. सात-आठ बच्चों की ‘जननी’, उनमें कुछ भीखू के हैं !
    किस बच्चे का कौन ‘पिता’ है, कौन पड़े इस ‘रार’ में !!

    यथार्थ परक लेखन ज़िंदगी से उठाया हुआ भोगा हुआ।

    ReplyDelete

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP