(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘जठर’ से
बढ़ कर ‘गर्म आग है और नहीं संसार में !
‘तहज़ीबें’
जल जातीं इसके, दहक रहे ‘अंगार’ में !!
जब जलती
है ‘काम’ की ‘ज्वाला’, सारी ‘शान्ति’ जलाती है !
आग लगा
देती है ‘मीठे मीठे मोहक प्यार’ में !!
यह न
बुझी तो, ‘अरमानों’ को झुलसा कर रख देती है !
‘अनुबन्धों’
को ‘जला-जला’ कर बदला करती ‘क्षार’ में !!
‘झुग्गी’ में रहता जो भीखू, उसका थोड़ा ‘हाल’
सुनो !
भूख लगी
तो, ले आता है’ जो भी मिला उधार में !!
अपनी
‘कुण्ठा’ भरी ‘कसक’ को, दबा नहीं जब पाता है !
‘डूब-डूब’
कर ‘होश’ गँवाता, ‘लालपरी’ के प्यार में !!
‘भूख’ का करके रोज़ बहाना, माँग-माँग कर लाता
है-
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
सात-आठ बच्चों की ‘जननी’, उनमें कुछ भीखू के हैं !
ReplyDeleteकिस बच्चे का कौन ‘पिता’ है, कौन पड़े इस ‘रार’ में !!
यथार्थ परक लेखन ज़िंदगी से उठाया हुआ भोगा हुआ।