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Saturday, 11 October 2014

(11) ‘कंगाल अमीरी’ (क) ‘दिल’ के ‘मुफ़लिस’ लोग !

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

                                             

 

 ‘दिल’ के ‘मुफ़लिस’ लोग हैं. पर ‘ज़ेब’ के कितने ‘अमीर’ !!


बहुत ‘ओछी सोच’ वाले, दिख रहे हैं ‘जहाँगीर’ !!

 

 

दास ‘कंचन’ के कई हैं, ‘कामिनी’ के हैं कई !


इनके ‘माथे’ पर खिंची है, बस ‘तबाही’ की ‘लकीर’ !!

 

 

‘फैसले’ औ ‘असलियत’ का ‘साथ’ टूटा ऐसे कुछ-


बहुत ‘हक़तलफ़ी’ की आदी, ‘वकीलों’ की हर ‘नज़ीर’ !!

 

 

‘ख़ुदाई’ के ‘दौर’ में हम, ‘फ़क्र’ अब कस पर करें ?


माँगते अपने लिये ही’, ‘ख़ुदा’ से सारे ‘फ़कीर’ !!

 

 

‘वित्त’ के ‘जंजाल’ में उलझा हुआ है क्यों ‘मनुज’ ?


तोड़ने इस ‘जाल’ को तो, मर गये कितने ‘कबीर’ !!

 

 

‘प्यार’ की दीवानी ‘मीरा’, थक चुकी है नाच कर !


और अब ‘सतसई’ के भी, हैं न ‘पैने’ कोई ‘तीर’ !!

 

 

कह रहे हैं ज़ोर से, कोई सुने अब ऐ “प्रसून” !


‘शोले’ अब तो भड़केंगे ही, ‘चिनगारियाँ’ जों हैं ‘अधीर’ !!

               

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