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Tuesday, 7 October 2014
(9) ‘धर्म-गिद्ध’ !
हिंसक
कुछ ‘धर्मों के गिद्ध’ नज़र आते हैं !
दुखी
यों ‘गान्धी’, ’नानक’ ‘बुद्ध’ नज़र आते हैं !!
‘स्नेह-हंस’,
वानों से बिद्ध नज़र आते हैं !!
‘जाहिल’
कुछ ऊपर से, ‘प्रबुद्ध’ नज़र आते हैं !!
‘मज़हब’
के सुलग रहे ‘युद्ध’ नज़र आते हैं !!
‘पर्दे’
में ‘वासना’ के ‘गिद्ध’ नज़र आते हैं !!
कितने
अखबारों में ‘प्रसिद्ध’ नज़र आते हैं !!
Labels:
ग़ज़ल
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बहुत खूब !
ReplyDelete‘बगुले’ हैं ‘भगत’ कई, ‘हंसों’ के ‘स्वाँग’ भरे-
ReplyDelete‘जाहिल’ कुछ ऊपर से, ‘प्रबुद्ध’ नज़र आते हैं !!
..बहुत खूब !
माइक पर चिल्लाते, ‘बधिर’ समझ ‘ईश्वर’ को !
ReplyDelete‘मज़हब’ के सुलग रहे ‘युद्ध’ नज़र आते हैं !!
वाह बेहद लाजवाब रचना :)
कृपया मेरे ब्लॉग तक भी आयें, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)