सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
नर्काचौदस-पर्व मनायें, अघ-आलस
को मार !
हरें धरा से समूल नाशें, ओघ-पाप
का भार !!
आचरणों की मैल निखारें, करें
इन्हें हम साफ़ !
सदाचार के रस से धोयें, सारे भ्रष्टाचार
!!
हर कर हर अज्ञान-अँधेरा,
विद्या-दीपक वार-
बुद्धि-हीनता दूर भगायें, करके ज्ञान-प्रसार
!!
इंसानों के बीच में कोई, रहे न दानव
आज !
निर्बल को मत कोई सताये, ऐसा
करें प्रचार !!
दुराचार के नर्कासुर का, हो मत
कहीं प्रवेश !
तभी स्वर्ग बन क्र उभरेगा, यह
सारा संसार !!
“प्रसून” सारे बाग़ के खिल कर,
नित्य लुटायें हास |
जीवन की बगिया में पनपे अब न
कहीं पतझार !!
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