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Thursday, 9 October 2014
(10) पिघलती गति !
‘जमी
हुई’ हर ‘ताक़त’ गलने वाली है !!
बुझी
‘मोमबत्ती’ फिर जलने वाली है !!
इसे
‘ज़िंदगी’ फिर से मिलने वाली है !!
गिरती
‘हालत’ पुन: सँभलने वाली है !!
‘विश्वासों’
की ‘गाड़ी’ चलने वाली है !!
‘मन्थन’
की हर ‘लहर’ उछलने वाली है !!
“प्रसून”
की यह ‘बगिया’ खिलने वाली है !!
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ग़ज़ल
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