(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
ये
‘परिन्दे’ प्यार के कितने हुए मायूस हैं !
‘उकाबों’ का डर इन्हें कितना हुआ महसूस है !!
देखने
में बाड़,
ऊपर से बड़ी मजबूत है |
हकीक़त
में यह बड़ी कमज़ोर,
गलती ‘फूस’ है ||
अपने
घर के लोग अपने घर से ही बागी हुये-
बन
गये ये शत्रुओं के घरों के जासूस हैं !!
आ
गया है ‘जलजला’, ‘शान्ति’ के इस ‘भवन’ में–
‘छतों’
से गिरने लगे कुछ टूटते ‘फ़ानूस’ हैं ||
खा
रहे हैं देश का जी भर के धन औ अन्न ये–
त्याग
करने के लिये पर सभी तो कंजूस हैं ||
"प्रसून"
कुचले गये,
‘कलियाँ’ डाल से टूटीं गिरीं -
बाग में हैं घुसे पापी ‘दरिन्दे’ मनहूस हैं !!
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