(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘उपदेशों’
की ‘खाद’ डाल कर, कोशिश कर के हार गये !
‘आचरणों’
के ‘कृषकों’ के आयास सभी बेकार गये !!
तुमने
‘द्वार’ न खोला मन का, ‘प्रीति-कपाटें' बन्द रहीं |
कई
‘फ़रिश्ते’ दस्तक दे कर, लौटे, तुम्हें पुकार गये !!
हमने
सह लीं सारी ‘चोटें’, गले लगाया, प्यार किया |
यद्यपि
सारे ‘अतिथि’ फ़रेबी, करके निठुर ‘प्रहार’ गये !!
दिखा
के ‘गुलदस्ते’ मन-मोहक, ‘नक़ली इत्र’ की ‘गन्ध’-लसे-
मीत ह्रदय के चुपके-चुपके, कितनी ‘चोटें’ मार
गये !!
इन
‘मल्लाहों’ की क्या कहिये, ‘वफ़ा’ नहीं इनके ‘दिल’ में |
डुबा
दिया ‘मँझधार’ में हमको, खुद कों पार उतार गये !!
इस
‘बगिया’ में ‘मस्ती’ अब तक दूर रही ‘मधुमासों’ में-
“प्रसून”
महके ‘आँचल’ लेकर, ‘बसन्त’ कितनी बार गये !!
इन ‘मल्लाहों’ की क्या कहिये, ‘वफ़ा’ नहीं इनके ‘दिल’ में |
ReplyDeleteडुबा दिया ‘मँझधार’ में हमको, खुद कों पार उतार गये !!
प्रसून भाई! बहुत ऊंचे पाये का लेखन निकल रहा है आपकी कलम से ग़ज़ल में ग़ज़ल की खुश्बू है ताज़ा ग़ज़ल की, बासी की बू नहीं।