Followers
Friday, 5 September 2014
(7) बंजर दिल (क) दिल की धरती (हकीकत की एक गज़ल)
‘धरती’ ‘दिल की हो गयी है, कितनी ‘बंजर’ देखिये !!
‘खाद-पानी’ प्रेरणा के हो गये हैं सब
विफल-
‘आचरण की स्थली’ अब बहुत ‘ऊसर’ देखिये !!
सबके जज्वातों की चोटों का असर मुझ पर हुआ-
‘दर्द’ का छलका है आँखों में ‘समुन्दर’
देखिये !!
कल तलक थीं रोशनी की धुंधली उम्मीदें मगर-
मैंने सोचा था कि उनको दोस्त का दूं
मर्तबा-
पर उन्होंने पीठ पर मारा है खंज़र देखिये
!!
'प्रसून'
अंगों से लगे जो गगन बेली की तरह-
जोड़ कर सम्बन्ध पीते, लहू शातिर देखिये !!
Labels:
ग़ज़ल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment