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Saturday, 6 September 2014

(7) बंजर दिल (ख) पठारों से हृदय

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)


                                         
पठारों से हृदय के पथरीले मंज़र देखिये !

दया, करुणा के लिये ये हुए ये बंजर देखिये !!

बुलबुलों-मैनाओं ने है विवश समझौता किया-

सोने-चाँदी के बड़े मज़बूत ‘पिंजर’ देखिये !!

‘पंकजों’ में छुपे ‘भँवरे’, तितलियाँ’ व्याकुल हुये-

‘ताल’ में घुस आये भूखे, कई ‘कुंजर’ देखिये !!



मीत बनने के लिये, नाटक रचाने आ गये -

आस्तीनों में छुपाये लोग ‘खंज़र’ देखिये !!

उठी हैं तूफ़ान लेकर कई ‘पछुवा आँधियाँ’-

‘सभ्यता की छतरियाँ’ हैं हुई जर्जर देखिये !!

 वंचना की पूतना’ है 'प्रेम' को छलने चली -

बजाती मायाविनी ‘माया की झांझर’ देखिये !!

हरे ‘बागों-बगीचों’, वन-वितानों’ की कमी से -

‘बसन्ती मौसम’ भी लगता, आज ‘पतझर’ देखिये 
!! 

मुर्झा गये हैं ‘आस्था की क्यारी’ के ये "प्रसून"

हुए ‘निर्जल भावना’ के कई ‘निर्झर’ देखिये !!




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