(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
पठारों
से ‘हृदय
के पथरीले मंज़र’
देखिये !
दया, करुणा के लिये ये हुए ये ‘बंजर’ देखिये !!
‘बुलबुलों-मैनाओं’
ने है विवश समझौता किया-
‘सोने-चाँदी’
के बड़े मज़बूत ‘पिंजर’ देखिये !!
‘पंकजों’
में छुपे ‘भँवरे’,
‘तितलियाँ’ व्याकुल हुये-
‘ताल’ में घुस आये भूखे, कई ‘कुंजर’ देखिये !!
मीत
बनने के लिये,
नाटक रचाने आ गये -
आस्तीनों में छुपाये लोग ‘खंज़र’ देखिये !!
उठी
हैं तूफ़ान लेकर कई ‘पछुवा आँधियाँ’-
‘सभ्यता की छतरियाँ’ हैं हुई जर्जर देखिये !!
‘ वंचना
की पूतना’ है 'प्रेम' को
छलने चली -
बजाती मायाविनी ‘माया की झांझर’ देखिये !!
हरे
‘बागों-बगीचों’, ‘वन-वितानों’
की कमी से -
‘बसन्ती मौसम’ भी लगता, आज ‘पतझर’ देखिये !!
मुर्झा
गये हैं ‘आस्था की क्यारी’ के ये "प्रसून"
हुए ‘निर्जल भावना’ के कई ‘निर्झर’ देखिये !!
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