(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘मधुवनों’ में ‘शान्ति’ का होता ‘विभंजन’ देखिये !
डरे
हैं ‘बाजों’
से कितने,
भोले ‘खंजन’
देखिये !!
‘हिरण’
भागे,
‘शशक’ दुबके और अब तो थम गये-
‘तितलियों’
की ‘थिरकनें’, ‘भ्रमरों’
के ‘गुंजन’
देखिये !!
‘न्याय’
तोलें किस तरह,
‘इंसाफ की दूकान’ में
डगमगाया है 'तराजू' का
समंजन देखिये !!
दर्द
पाकर रो रही है,तर
हुए दोनों नयन -
सभ्यता की सुन्दरी का बहा अंजन देखिये !!
आग
‘जंगल’ में लगी है,
‘आँधियों’ के ज़ोर से -
रगड़ खा के, ‘हवाओं’
से जला ‘चन्दन’ देखिये !!
कहाँ
जाएँ गुनगुनाने,
गीत गाने ऐ "प्रसून"
बाग में हर ओर ‘चिड़ियों’ का है क्रन्दन देखिये !!
शब्द कोष
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