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Sunday, 31 August 2014

(5) उकाव-कबूतर (क) देखिये (प्रतीकों में नगन सत्य) !

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
    


                                              
                                                                              

‘उकाबों’ की सेहतें, पहले से बेहतर देखिये !


डरे, सहमे हकों के हैं कितने ‘तीतर’ देखिये !! 



     
जुल्म के ‘पत्थर’ से करना चोट उनका खेल है –


चोट खा कर गिर पड़े कितने कबूतर देखिये !!


 

 नुमायश करते हैं मीठे बोल की हम आये दिन-


पैनी नुकीली सोच  कितनी दिल के भीतर देखिये !!


 'प्रीति-मृगछौने' के तन पर घाव गहरा,दर्द है-


नफ़रतों के शिकारी ने मारा खंज़र देखिये !!




घूमते फिरते आवारा, बाज बागी हो गये |



तन अबाबीलों के घायल लहू से तर देखिये !!


 

चढाने के लिये कैसे बाग से लायें "प्रसून"-



छुपे हैं ख़ूनी दरिंदे,  कई अंदर देखिये !!


       

 

 

 

 

 

 

 

       

 



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