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Saturday, 30 August 2014

गज़ल-कुञ्ज (4) झरबेरी-गुलाब (ग) ‘खरगोशों’ में ‘ऊदबिलाव’ |

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
    
खरगोशों में ‘ऊदबिलाव !
‘झरबेरी’ के पास ‘गुलाब’ !!
गले मिलें जब बन कर ‘यार’-
हुये ‘कँटीले’, ‘मीठे ख़्वाब’ !!
बेदर्दी की हद हो पार-
‘कोमलता’ पर ‘निठुर दबाव’ !!
‘भोले खंजन’ पर कर वार-
चोंच से घायल करे उकाव !!

हो दोनों में कैसे प्यार ?
इक ‘शर्बत’ दूजा ‘तेज़ाब’ ||
अब पछताना है बेकार-
किया ‘दोस्त’ का गलत चुनाव !!
“प्रसून” सहते हैं हर बार-
‘पंखुड़ियों’ पर लगते घाव !!





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