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Friday, 20 July 2012

गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(ल) बंजर दिल(१)दिल की धरती



बंजर दिल की धरती।


प्यार का फूटा नहीं है ,एक अंकुर देखिये।

दिल की धरती हो गयी है,कितनी बंजर देखिये।।



खाद,पानी 'प्रेरणा' के हो गये हैंसब विफल-

आचरण की स्थली अब बहुत ऊसर देखिये||
   
  
सबके जज्वातों की चोटों का असर मुझ पर हुआ-

दर्द का छलका है आँखों में समुन्दर देखिये ||
  

कल तलक थीं रोशनी की धुंधली उम्मीदें मगर-

आज फिर छाया हुआ कोहरे का मंज़र देखिये||
  

मैंने सोचा था कि उनको दोस्त का दूं मर्तबा-

पर उन्होंनेपीठ पर मारा है खंज़र देखिये||
  

'प्रसून'अंगों से लगे जो गगन बेली की तरह-

जोड़ कर सम्बन्ध पीते,लहू शातिर देखिये||

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