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Thursday, 5 July 2012

गज़ल-कुञ्ज (द)--झरबेरी-गुलाब -(२)रहे गुलाब दुखी हो बोल|

 


रहे गुलाब दुखी हो बोल |

"ऐ झरबेरी धीरे डोल ||

 

"तू तो अपनी मौज में है-

घायल मेरे अधर कपोल ||

 

"चुभते तेरे शूल मुझे -

मत कर इतना निठुर किलोल || 

 


"तू खुशियों में झूम रही- 

मेरी खुशियाँ  डाबाडोल ||


   

"काँटों का दोनों का तन - 

तेरा मेरा एक न मोल!!



"तू घायल कर देता है-

लेता जिसका बदन टटोल ||

 

"गुठली पर जब दाँत लगे- 

खुल जाती है तेरी पोल!!

 


कोमल है इतिहास मेरा -

तेरा काँटों का भूगोल ||

   

"जो मेरे "प्रसून" को छू ले -

देता मैं मन में रस घोल ||"



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