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Monday 2 July 2012

गज़ल-कुञ्ज (गज़ल-संग्रह) (द)-झरबेरी-गुलाब -(१)मेरे पड़ोसी

        

आइये मेरे पड़ोसी को नज़र भर देखिये |

देखिये इसकी अदायें, इसके तेवर देखिये ||

 

भवन इनका काँच का है, किन्तु वे निश्चिन्त है -

फेंकते वे मेरे घर पर कितने पत्थर देखिये !

 

पत्थरों का हृदय,पत्थर का कलेजा हो गया -

अक्ल पर उनके पड़े हैं कितने पत्थर देखिये !!

    
    

प्यार से भरने हमें बाहों में अपनी आ गये -

आस्तीनों में छिपाये पैने खंज़र देखिये ||

 

चोट हमने खाई जब, एकांत में हर्षित हुये -

तसल्ली देते हैं झूठी तरस खा कर, देखिये ||




मगरमच्छों की तरह हिंसक है उनकी भावना -

आँख में उमड़ा दिखावे का समुन्दर देखिये ||



"प्रसून" की सारी पंखुरियाँ किस तरह घायल हुईं -

गुलाबों के पास झरबेरी का मंज़र देखिये ||


 

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