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Sunday, 1 July 2012

गज़ल कुञ्ज (गज़ल संग्रह)-(स)कंटाल-(२)चुभन भरे दर्द मेरे अंक लगे हैं |

     


चुभन भरे दर्द मेरे अंक लगे हैं |

बिच्छुओं के,ततैओं के डंक लगे हैं ||

 


रूपवती,लाजवती सभ्यता के अब-

चाँद जैसे चेहरे कलंक लगे हैं ||


     

उड़ रहे हैं बेहिसाब दिशा- हीन से-

'कामना' के सीमा-हीन पंख लगे हैं ||

          

मन हुए हैं बद रंग मैले मैले से -                                                         

आचरण के वसनजैसे पंक लगे हैं ||

     

घूमने का सरे आम साहस है कहाँ ?

गली गली नाग से आतंक लगे हैं ||

         

"प्रसून" किसके स्नेह-पगे हृदय से मिलें ?

दाग मन के पटल में असंख्य लगे हैं ||



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