चुभन भरे दर्द मेरे अंक लगे हैं |
बिच्छुओं के,ततैओं के डंक लगे हैं ||
रूपवती,लाजवती सभ्यता के अब-
चाँद जैसे चेहरे कलंक लगे हैं ||
उड़ रहे हैं बेहिसाब दिशा- हीन से-
'कामना' के सीमा-हीन पंख लगे हैं ||
मन हुए हैं बद रंग मैले मैले से -
आचरण के वसनजैसे पंक लगे हैं ||
घूमने का सरे आम साहस है कहाँ ?
गली गली नाग से आतंक लगे हैं ||
"प्रसून" किसके स्नेह-पगे हृदय से मिलें ?
दाग मन के पटल में असंख्य लगे हैं ||
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