Powered by Blogger.

Followers

Saturday, 7 July 2012

गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(य)उकाव-कबूतर-(१)देखिये (प्रतीकों में नग्न सत्य}


उकाबों की सेहतें,पहले से बेहतर देखिये |
डरे, सहमे हकों के हैं कितने तीतर देखिये || 
                                                                         
                                 
'जुल्म' के पत्थर से करना चोट उनका खेल है -
चोट खा कर गिर पड़े कितने कबूतर देखिये ||
    
 नुमायश करते हैं मीठे बोल की हम आये दिन- 
 पैनी नुकीली सोच कितनी दिल के भीतर देखिये || 


  
'प्रीति-मृगछौने' के तन पर घाव गहरा,दर्द है-
नफ़रतों के शिकारी ने मारा खंज़र देखिये ||

घूमते फिरते आवारा,बाज बागी हो गये |
तन अबाबीलों  के घायल लहू से तर देखिये ||

चढाने के लिये कैसे बाग से लायें "प्रसून"-
छुपे हैं ख़ूनी दरिंदे, कई अंदर देखिये ||
 

No comments:

Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP