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Wednesday, 20 June 2012

गज़ल कुञ्ज (गज़ल-संग्रह) (अ) प्रणाम (आराधना गज़ल)- (१)प्रियतम प्रणाम-(क) हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार (१) प्रियतम-प्रणाम ============= (क) हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार ०००००००००००००००००००० तुम प्रकाश,तुम हो अंधकार| हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार || निगमागम तुम्हीं अपारगम्य| पा सकता तुम से कौन पार?? प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया- तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार|| तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ- आकार-हीन तुम महाकार|| निष्काम,कामना हो सब में- संसृति तुम, फिर भी हो असार|| तुम परम शून्य, तुम हो अनंत- निर्गुण तुम फिर भी गुणाकार|| प्रिय,'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम- तुम को प्रणाम शत कोटि बार|| अनिकेत व्याप्त हो कण कण में- सब के आधार हो निराधार || है "प्रसून" प्रियतम, शरणागत- भव-सिंधु से कर दो इसे पार|| >> Posted by Devdutta Prasoon at 03:14 | add a comment | send email | जो कहना है खुल कर बोल (अर्द्धहास्य)




(१)प्रियतम प्रणाम (क्रमश:)-- 
 
तुम प्रकाश,तुम हो अंधकार| 
हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार ||
 

निगमागम तुम्हीं अपारगम्य|
पा सकता तुम से कौन पार?? 


 

 प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार|| 


 
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार||              

   

 निष्काम,कामना हो सब में-
संसृति तुम, फिर भी हो असार||


तुम परम शून्य, तुम हो अनंत-
निर्गुण तुम फिर भी गुणाकार||
  
प्रिय,'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम-
तुम को प्रणाम शत कोटि बार||

 
अनिकेत व्याप्त हो कण कण में-
सब के आधार हो निराधार ||
 
है "प्रसून" प्रियतम, शरणागत-
भव-सिंधु से कर दो इसे पार|| 

 
 









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