(१)प्रियतम प्रणाम (क्रमश:)--
तुम प्रकाश,तुम हो अंधकार|
हे प्रियतम पूर्ण निर्विकार ||
निगमागम तुम्हीं अपारगम्य|
पा सकता तुम से कौन पार??
प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार||
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार||
निष्काम,कामना हो सब में-
संसृति तुम, फिर भी हो असार||
तुम परम शून्य, तुम हो अनंत-
निर्गुण तुम फिर भी गुणाकार||
प्रिय,'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम-
तुम को प्रणाम शत कोटि बार||
अनिकेत व्याप्त हो कण कण में-
सब के आधार हो निराधार ||
है "प्रसून" प्रियतम, शरणागत-
भव-सिंधु से कर दो इसे पार||
निगमागम तुम्हीं अपारगम्य|
पा सकता तुम से कौन पार??
प्रियतम तुम ब्रह्म,तुम्हीं माया-
तुम असत्,किन्तु तुम सत् अपार||
तुम हो समष्टि,हो व्यष्टि तुम्हीँ-
आकार-हीन तुम महाकार||
निष्काम,कामना हो सब में-
संसृति तुम, फिर भी हो असार||
तुम परम शून्य, तुम हो अनंत-
निर्गुण तुम फिर भी गुणाकार||
प्रिय,'अस्तिनास्ति'से परे हो तुम-
तुम को प्रणाम शत कोटि बार||
अनिकेत व्याप्त हो कण कण में-
सब के आधार हो निराधार ||
है "प्रसून" प्रियतम, शरणागत-
भव-सिंधु से कर दो इसे पार||
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