तुम 'प्रियतम' की अनुकृति प्रिया |
है नमन तुम्हें हे प्रकृति प्रिया ||
जड़ चेतन का पोषण करके -
सुख देना तेरी नियति प्रिया ||
जब ब्रह्म ने सारी सृष्टि रची -
तुमने भर दी गति प्रग़ति प्रिया ||
प्राणों में भर चेतना तुम्हीं -
मन को देती हो सु-मति प्रिया ||
संचालिका तुम्हीं जीवन की हो-
आभारी तव 'संसृति' प्रिया ||
होतीं जब कुपित 'विकृति' बनतीं
हो प्रसन्न बनतीं 'सुकृति' प्रिया ||
जल,थल,नभ,दासों दिशाओं में -
कण- कण में तुम ही लसित प्रिया ||
उत्पत्ति के 'काम' -"प्रसून" की तुम -
रूपसी अनिन्द्या 'रति'-प्रिया ||
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