Powered by Blogger.

Followers

Wednesday, 20 June 2012

गज़ल कुञ्ज (गज़ल संग्रह)-क्रम श:-(अ)प्रणाम-(२)प्रियतमा प्रणाम -(ग़)तुम 'प्रियतम' की अनुकृति प्रिया


   
  
 

तुम 'प्रियतम' की अनुकृति प्रिया |

है नमन तुम्हें हे प्रकृति प्रिया ||
 
जड़ चेतन का पोषण करके -

सुख देना तेरी नियति प्रिया ||
 
जब ब्रह्म ने सारी सृष्टि रची -

तुमने भर दी गति प्रग़ति प्रिया ||
     
प्राणों में भर चेतना तुम्हीं -

मन को देती हो सु-मति प्रिया ||
 
संचालिका तुम्हीं जीवन की हो-
आभारी तव 'संसृति' प्रिया ||
  
होतीं जब कुपित 'विकृति' बनतीं 

हो प्रसन्न बनतीं 'सुकृति' प्रिया ||
  

    
जल,थल,नभ,दासों दिशाओं में -

कण- कण में तुम ही लसित प्रिया ||
     
उत्पत्ति के 'काम' -"प्रसून" की तुम -

रूपसी अनिन्द्या 'रति'-प्रिया ||
 
 

No comments:

Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP