अन्धेरे में मुस्कराएं,खिलखिलायें |
आओ मिल कर दीप हम ऐसे जलायें ||
बन गया है शहर काजल कोठरी अब -
दाग काले,ह्रदय के कितने दिखायें ||
भूल कर उद्देश्य मानव-उन्नयन का -
स्वर्ण में उलझी हैं सारी संस्थायें ||
दृष्टिकोणों में न व्यापकता अभी तक -
बहुत उथली खोखली हैं भावनायें ||
तजो दक्षिण,और उत्तर, पूर्व,पश्चिम -
भेद से बन्धतीं कभी क्या ये दिशायें ||
राग अपना अलग मत देखो अलापो-
साथ मिल कर एकता के गीत गायें ||
'वित्त, कंचन,में सभी गुण' यह कहावत-
रूढ़ी है,इससे वतन को हम बचायें ||
तोड़ दें मैली कुचैली जंग वाली -
लौह की जंजीर -बेदी सी प्रथायें ||
रीतियाँ कुछ शुष्क काँटों सी नुकीली -
"प्रसून" मिल कर होलियाँ इनकी जलायें ||
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