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Sunday, 24 June 2012

गज़ल -कुञ्ज (क्रमश:)-(अ)प्रणाम-(३)गुरुवर प्रणाम ! (हे गुरु करते मन का सुधार!!)

    
तुम करते जीवन का सुधार |
हे गुरु करते मन का सुधार || 
    
हर, मलिन धूल आचरणों की -
बरसाते सुबोध रस सु-धार ||
 
ईश्वर के तुम जन- प्रतिनिधि हो -
हरते व्यवहारों के विकार || 

तुम 'रजक' भावना वसनों के -
मन- चादर का करते निखार ||
     

तुम ज्ञान- विवेक के मार्तण्ड-
हरते तुम चित् का अन्धकार ||

  

यदि तुम करुणाकर  कृपा करो !
फिर कौन समस्या दुर्निवार ??
 
सिंचित करते 'उलझन-मरुथल'-
बन समाधान-रस की फुहार ||
 
 हर निराश मन तुमने सींचा -
बरसाकर आशा- सुधा धार ||

                     

किस तरह थाह पाये "प्रसून"-
तुम रहस्य सागर हो अपार ||   

   

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