तुम करते जीवन का सुधार |
हे गुरु करते मन का सुधार ||
हर, मलिन धूल आचरणों की -
बरसाते सुबोध रस सु-धार ||
ईश्वर के तुम जन- प्रतिनिधि हो -
हरते व्यवहारों के विकार ||
तुम 'रजक' भावना वसनों के -
मन- चादर का करते निखार ||
तुम ज्ञान- विवेक के मार्तण्ड-
हरते तुम चित् का अन्धकार ||
यदि तुम करुणाकर कृपा करो !
फिर कौन समस्या दुर्निवार ??
सिंचित करते 'उलझन-मरुथल'-
बन समाधान-रस की फुहार ||
हर निराश मन तुमने सींचा -
बरसाकर आशा- सुधा धार ||
किस तरह थाह पाये "प्रसून"-
तुम रहस्य सागर हो अपार ||
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