बहूत पापिन हो गयी हैं ये हवायें |
सांस लेने किस गली गुलशन में जायें||
किस तरह हम स्वस्थ मन,जीवन सँवारें-
विषैली हैं जिस्म की,मन की दवायें ||
देख कर यह धुआँ ज़हरीला गगन में -
हँसें?गायें? मुस्करायें?? खिलखिलाएं ???
सी लिये मुहँ, ओढ़ ली चुप्पी सभी ने-
पहेली या प्रश्न किससे हम बुझायें ??
आँख पर पट्टी है बाँधे 'न्याय-देवी'-
माँगने हम न्याय किसके द्वार जायें ??
तेल डाले कान में सब स्वार्थ वाला -
कहाँ जा कर गुनगुनाएं, गीत गायें ??
आज हैं हमदर्द बिल्कुल मगरमच्छी-
किसे जाकर घाव हम दिल के दिखायें??
बहुत उलझन है हमारा मन दुखा है -
डस रही हैं हमें अपनी विवशतायें ||
"प्रसून"उलझी डोर अब खलने लगी है-
इसे सुलझाने को हम सब साथ आयें ||
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