हे प्रिय जननी भारती धरा |
तेरा तन मन है हरा भरा ||
वन, बाग, तडाग, नदी,सर में-
हर ओर रूप तेरा बिखरा ||
तैयार तुम्हारी रक्षा को-
उत्तर में हिम गिरि दे पहरा ||
तन धोता, दे कर मानसून -
है तीन ओर सागर गहरा ||
आ गया तुम्हारे आँगन जो -
उसका बिगरा जीवन सँवरा ||
तुमने सब को अपनाया है -
सर पर धर,कर माँ प्यार भरा ||
हर रंग के "प्रसून" गोदी में -
ले कर करती प्रसन्न दुलरा ||
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