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Wednesday 5 November 2014

(13) आव्हान-गज़ल / प्रयाण-गज़ल’ (क) ओ ‘भारत के लाल’ सुनो !

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

‘वीर-सपूती धरा’ कह रही, ओ ‘भारत’ के ‘लाल’ सुनो !

‘संस्कृति-गरिमा’ और ‘सभ्यता’, आज हुई ‘बेहाल’ सुनो !!

भारत ‘दिव्य देश’ था सुन्दर, आज ‘दैत्य-गढ़’ बना हुआ !

‘मन’, ‘सज्जनता’ के ‘शुभ धन’ से कितने हैं कंगाल’ सुनो !!

‘विषम स्वार्थ, ‘लिप्सा’ के ‘लोभी’, ‘दानव-दल’ हैं पनप रहे !

‘शस्त्र’ क्रान्ति के आज उठाओ, बन जाओ तुम ‘काल’ सुनो !!

‘छल-प्रपंच’ औ ‘कपट-धूर्त्तता’ छाई चारों ओर जटिल !

‘घोर अन्धेरे’ से हैं ‘धूमिल’, हम सब के ‘आमाल’ सुनो !!

‘किसने कितनी ‘संपत्ति’ लूटी, ‘राज-कोष’ से चुरा-चुरा’-

ये ‘खबरें’ अब ‘अखबारों’ में, छपती हैं हर साल सुनो !!


                              

                              
                  ‘मानवता’ की ‘क्यारी’ वाला, ‘हरियाला’ सा यह ‘मधुवन’-

देखो, ‘पतझर’ से पीड़ित हैं इसके ‘पत्ते-डाल’ सुनो !!’

‘विकास की गाड़ी’ के पहिये, ‘धर्म-कर्म’ होते लेकिन-

दोनों ‘पहिये’ जीर्ण-शीर्ण हैं, धीमी इनकी ‘चाल’ सुनो !!

अपने ‘दोष’ छुपा कर, उनको औरों के सर पर मढ़ते-

‘उँगली’ उठा-उठा कर बुनते, क्यों ‘कुतर्क के ‘जाल’ सुनो !!

‘निर्मल-उज्जवल’ आचरणों के, ‘कमल’ कहो अब कहाँ खिलें ?

‘जलकुम्भी-काई’ से ‘बोझल’, हैं ‘समाज’ के ‘ताल’ सुनो !!

‘छीन-झपट’ कर, निर्बल दीनों, से ‘बलशाली’ हक़ उनके-

उड़ा रहे हैं बैठे-बैठे, कई ‘मुफ्त’ का ‘माल’ सुनो !!

‘काक’ और ‘बक’ अनाचार के उड़ते हैं आज़ादी से-

“प्रसून” सहमे-सहमे भय से, ‘कोकिल’ और ‘मराल’ सुनो !!

                               

मराल-हंस

 

 

2 comments:

  1. सुन्दर रचना , बधाई !!

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  2. सुन्दर रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आका स्वागत है !

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