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Saturday, 8 November 2014
(13) आव्हान-गज़ल / प्रयाण-गज़ल’(ख) क़सम लीजिये !
अपने
‘वतन’ को सुधारने की क़सम लीजिये !
‘फूले
चमन’ को सँवारने की क़सम लीजिये !!
इसको
‘स्नेह’ में, उतारने की क़सम लीजिये !!
‘सभ्यता’
की ‘नाव’ देखो, आज डूबी जा रही !
करके
‘यत्न’ इसको, तारने की क़सम लीजिये !!
‘मन-सुमन’,
‘सृजन-पराग’ से भरा मनुष्य का-
ऐसे ‘वसन’
को निखारने की क़सम लीजिये !!
‘अजदहा’
है, ‘आग’ की, ‘फुहार’ उगलता हुआ-
‘लपट’
भरा ‘लोभ’, मारने की क़सम लीजिये !!
‘कलियों’
और ‘फूलों’ के ‘जिस्म’ मत जलाइये !
‘हविश-तपिश’
से, उबारने की क़सम लीजिये !!
इससे ‘प्रेम-रस’,
निथारने की क़सम लीजिये !!
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ग़ज़ल
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-11-2014) को "स्थापना दिवस उत्तराखण्ड का इतिहास" (चर्चा मंच-1792) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
सार्थकता लिए सुन्दर प्रस्तुति ..
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