(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘वीर-सपूती
धरा’ कह रही, ओ ‘भारत’ के ‘लाल’ सुनो !
‘संस्कृति-गरिमा’
और ‘सभ्यता’, आज हुई ‘बेहाल’ सुनो !!
भारत
‘दिव्य देश’ था सुन्दर, आज ‘दैत्य-गढ़’ बना हुआ !
‘मन’,
‘सज्जनता’ के ‘शुभ धन’ से कितने हैं कंगाल’ सुनो !!
‘विषम
स्वार्थ, ‘लिप्सा’ के ‘लोभी’, ‘दानव-दल’ हैं पनप रहे !
‘शस्त्र’
क्रान्ति के आज उठाओ, बन जाओ तुम ‘काल’ सुनो !!
‘छल-प्रपंच’
औ ‘कपट-धूर्त्तता’ छाई चारों ओर जटिल !
‘घोर
अन्धेरे’ से हैं ‘धूमिल’, हम सब के ‘आमाल’ सुनो !!
‘किसने
कितनी ‘संपत्ति’ लूटी, ‘राज-कोष’ से चुरा-चुरा’-
ये
‘खबरें’ अब ‘अखबारों’ में, छपती हैं हर साल सुनो !!
‘मानवता’
की ‘क्यारी’ वाला, ‘हरियाला’ सा यह ‘मधुवन’-
सुन्दर रचना , बधाई !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आका स्वागत है !