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Tuesday 4 November 2014

(12) ‘सियासत’ के ‘पीर (ग) ‘नेकी’ का ‘रंग’ !

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

                                              

‘नेकी’ का ‘रंग’ क्यों धुला दिया तुमने ?


बदला क्यों ‘बदी’ से खुला दिया तुमने ??


 ‘प्यार’ के ‘आँगन’ में ‘वफ़ा’ की ‘वारी’ थी –



‘नामो-निशां’ उसका क्यों मिटा दिया तुमने ??

 

 

तुमने जो उखाड़ा था, ‘मोगरे’ का ‘बूटा’ था-


  ‘धतूरे’ का ‘पौधा’ क्यों लगा दिया तुमने ??


                            

 ‘सब्र’ के ‘बाँध’ पर ज़ुल्मों’ की ‘चोटें’ कीं-


इस क़दर इस दिल को, दुखा दिया तुमने !!

 

 

‘तूफ़ान’ से बचा कर , मुश्किल से रक्खा था-


इकलौता ‘दीपक’ वह बुझा दिया तुमने !!

 

 

‘रहबर’ बनाया था, समझ कर ‘अपना’ उफ़ !


‘रास्ता’ उलटा क्यों बता दिया तुमने ??

 

 

“प्रसून” हवा हो कर, टूट गया, बिखर गया !


‘गुब्बारा’ यों वादों का फुला दिया तुमने !!


                        

 

 

 

3 comments:

  1. बेहतरीन गजल.. चित्रों के लिए भी की गयी खासा मेहनत दिखाई देती है...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6-11-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1789 में दिया गया है
    आभार

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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