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Friday, 14 November 2014

(14) सभ्यता (क) सभ्यता इसी को कहते हैं !


 

 

‘फूलों’ में ‘काँटे’ रहते हैं |


वे इक-दूजे को सहते हैं ||

 

 

दोनों में ‘समझौता’ हो जब-


‘सभ्यता’ इसी को कहते हैं ||

 

 

हम ‘भले-बुरे’ का निवाह कर-


अनवरत ‘नदी’ से बहते हैं ||


                                           

 

 

जब तक न ‘मिलन’ हो ‘सागर’ से-


तब तक क्या रुकना ! चलते हैं ||

 

 

खुद भी चलते अपनी ‘मंजिल’-


औरों को चलने देते हैं ||

 

 

‘गैरों’ के लिये हमारे तो-


‘अरमान’ दिलों में पलते हैं ||

                                  

  ‘रस-रुप-गन्ध’ जो सब पायें-


‘जीवन’ के “प्रसून” खिलते हैं ||


Wednesday, 12 November 2014

(13) आव्हान-गज़ल / प्रयाण-गज़ल’(ग) मुस्कुराते रहिये !

(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) 

‘सूरज’ से कभी जगमगाते रहिये !


‘सितारों’ से कभी टिमटिमाते रहिये !!

 

 

‘अन्धेरे’ की ‘रियासत’ में ‘मशाल’ जैसे-


बनकर के ‘चाँद’ मुस्कुराते रहिये !!

 

 

‘पतझर’ है कभी, तो ‘बहार’ है कभी-


‘कोशिशों’ के ‘पौधे’ लगाते रहिये !!

            

 मौजूदा ‘वक्त’ की ‘खुशी’ की ख़ातिर-


‘अतीत’ के ‘दर्द’ कों भुलाते रहिये !!

 

 

‘धूल’ में सने हों जो ‘प्यार’ के मोती’-


उठा कर, गले से लगाते रहिये !!

 

 

‘मिठास’ है, इनकी ‘चहक’ में कितनी !


‘परिन्दे प्यार के’ बुलाते रहिये !!

 

 

हम तो हँसेंगे, है “प्रसून” की ‘फ़ितरत’ !


आप चाहे ‘नश्तर’ चुभाते रहिये !!


                           

 

 

 

Saturday, 8 November 2014

(13) आव्हान-गज़ल / प्रयाण-गज़ल’(ख) क़सम लीजिये !

(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) 

अपने ‘वतन’ को सुधारने की क़सम लीजिये !


‘फूले चमन’ को सँवारने की क़सम लीजिये !!


 

पी के ‘मद’,‘मदन’ का ‘रुप’ क्यों ‘कुरूप’ कर रहे?


इसको ‘स्नेह’ में, उतारने की क़सम लीजिये !!


 

‘सभ्यता’ की ‘नाव’ देखो, आज डूबी जा रही !


करके ‘यत्न’ इसको, तारने की क़सम लीजिये !!


                             

 

‘मन-सुमन’, ‘सृजन-पराग’ से भरा मनुष्य का-


हर ‘कु-गन्ध’ को, निवारने की क़सम लीजिये !!


 

‘जिन्दगी’ है ‘वसन’ प्रेम का, बड़ा सुहावना !


ऐसे ‘वसन’ को निखारने की क़सम लीजिये !!


 

‘अजदहा’ है,आग’ की, ‘फुहार’ उगलता हुआ-


‘लपट’ भरा ‘लोभ’, मारने की क़सम लीजिये !!


 

‘कलियों’ और ‘फूलों’ के ‘जिस्म’ मत जलाइये !


‘हविश-तपिश’ से, उबारने की क़सम लीजिये !!


 “प्रसून”, ‘हृदय-पात्र’ में, जमी हैं ‘तलछटें’ कई-


इससे ‘प्रेम-रस’, निथारने की क़सम लीजिये !!


                           प्रेम-रस’ के लिए चित्र परिणाम

 

 

 

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