Powered by Blogger.

Followers

Sunday 31 August 2014

(5) उकाव-कबूतर (क) देखिये (प्रतीकों में नगन सत्य) !

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
    


                                              
                                                                              

‘उकाबों’ की सेहतें, पहले से बेहतर देखिये !


डरे, सहमे हकों के हैं कितने ‘तीतर’ देखिये !! 



     
जुल्म के ‘पत्थर’ से करना चोट उनका खेल है –


चोट खा कर गिर पड़े कितने कबूतर देखिये !!


 

 नुमायश करते हैं मीठे बोल की हम आये दिन-


पैनी नुकीली सोच  कितनी दिल के भीतर देखिये !!


 'प्रीति-मृगछौने' के तन पर घाव गहरा,दर्द है-


नफ़रतों के शिकारी ने मारा खंज़र देखिये !!




घूमते फिरते आवारा, बाज बागी हो गये |



तन अबाबीलों के घायल लहू से तर देखिये !!


 

चढाने के लिये कैसे बाग से लायें "प्रसून"-



छुपे हैं ख़ूनी दरिंदे,  कई अंदर देखिये !!


       

 

 

 

 

 

 

 

       

 



Saturday 30 August 2014

गज़ल-कुञ्ज (4) झरबेरी-गुलाब (ग) ‘खरगोशों’ में ‘ऊदबिलाव’ |

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
    
खरगोशों में ‘ऊदबिलाव !
‘झरबेरी’ के पास ‘गुलाब’ !!
गले मिलें जब बन कर ‘यार’-
हुये ‘कँटीले’, ‘मीठे ख़्वाब’ !!
बेदर्दी की हद हो पार-
‘कोमलता’ पर ‘निठुर दबाव’ !!
‘भोले खंजन’ पर कर वार-
चोंच से घायल करे उकाव !!

हो दोनों में कैसे प्यार ?
इक ‘शर्बत’ दूजा ‘तेज़ाब’ ||
अब पछताना है बेकार-
किया ‘दोस्त’ का गलत चुनाव !!
“प्रसून” सहते हैं हर बार-
‘पंखुड़ियों’ पर लगते घाव !!





Friday 29 August 2014

गज़ल-कुञ्ज (4) झरबेरी-गुलाब (ख) रहे गुलाब दुखी हो बोल !

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
    

रहे गुलाब दुखी हो बोल !

"
ऐ झरबेरी धीरे डोल !!

"तू तो अपनी मौज में है-

घायल मेरे अधर कपोल !!

"चुभते तेरे शूल मुझे -

मत कर इतना निठुर किलोल !!

"तू खुशियों में झूम रही- 

मेरी खुशियाँ डाबाडोल !!

"
काँटों का दोनों का तन - 

तेरा मेरा एक न मोल !!

"
तू घायल कर देता है-

लेता जिसका बदन टटोल !!

"
गुठली पर जब दाँत लगे-

खुल जाती है तेरी पोल !!

कोमल है इतिहास मेरा –

तेरा काँटों का भूगोल !!

"जो मेरे "प्रसून" को छू ले –

देता मैं मन में रस घोल !!"




About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP